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बुंदेलखंड – उत्तर प्रदेश का सबसे उपेक्षित क्षेत्र

Surya Pratap Singh by Surya Pratap Singh
January 9, 2017
in Opinions, हिन्दी
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बुंदेलखंड
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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में हैं| इन चुनावों में राजनैतिक पार्टियाँ विभिन्न मुद्दों और विचारों के साथ जनता के सामने जा रही है| परन्तु जब भी कभी उत्तर प्रदेश में सूखे, पिछड़ेपन और किसानों की आत्महत्या का विश्लेषण किया जाता है तो अनायास ही लोगों के दिमाग में बुंदेलखंड नाम कौंध जाता है| इतिहास, संस्कृति और भाषा को समेटे यह क्षेत्र जो अक्सर राजनैतिक भेदभाव का शिकार रहा है और वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है और शायद मेरी नजर में हमेशा इस्तेमाल किया जाता रहेगा|

कई बार आप नेताओं के मुंह से महारानी लक्ष्मीबाई की कर्म भूमि, महर्षि वेदव्यास की जन्म स्थली, श्री मैथिली शरण गुप्ता जी के साहित्य एवं आल्हा-उदल के शौर्य की गवाही देता शब्द “बुंदेलखंड” सुन चुके होंगे| इस शब्द के साथ पक्के तौर पर कुछ और शब्द जुड़े हुए होंगे जिसमें से एक को कहते है “पैकेज” मतलब की “आर्थिक सहायता”| इस पैकेज को हम रोजमर्रा की भाषा में चुनावी लोलीपॉप भी कह सकते हैं| जिस पैकेज से ना तो कोई विकास की राह दिखाई पड़ती है और ना ही ये क्षेत्र उन्नत हो पाता है परन्तु हाँ कागजी कार्यवाही में यह क्षेत्र भारत के किसी न किसी महानगर को पीछे छोड़ता हुआ दिखता है|

प्रदेश की राजनीति में भी उपेक्षित रहते इस बुंदेलखंड के प्रति अक्सर कुछ गंभीर प्रश्न मन के कोने में स्थान बनाने में सफल हो जाते हैं:-

  1. बुंदेलखंड को “राज्य” बनाने की मांग से कन्नी क्यों काट रहा राजनैतिक तबका: – चाहे केंद्र हो या राज्य शासित सरकार या प्रदेश का राजनैतिक संगठन, सभी का राजनैतिक नेतृत्व अक्सर बुंदेलखंड क्षेत्र को राज्य बनाने के प्रश्न पर चुप्पी साध जाता है| मेरी समझ में जातिवाद, भ्रष्टाचार, अवैध खनन और प्रमुख संसाधनों की कमी से जूझ रहे इस क्षेत्र तक विकास पहुँच जाने के बाद राजनेताओं के पास कोई चुनावी मुद्दा नहीं रह जाएगा इसलिए वे इस क्षेत्र को राज्य बनाने की व्यापक मांग को सार्वजनिक मंचों पर नहीं उठा रहे हैं|

पिछले कुछ समय में कुछ संगठनों ने स्वयं को गैर-राजनीतिक संगठन बता बुंदेलखंड राज्य की मांग को जोर शोर से उठाया था जिसकी वजह उन संगठनों ने इस क्षेत्र के बड़े तबके खासकर युवाओं को अपनी ओर खासा आकर्षित कर लिया था| एक समय लग रहा था ये चिंगारी एक बड़ा शोला बनने वाली है परन्तु इसके पीछे उन संगठनों की बहुत बड़ी राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं छिपी थी| प्रदेश में अपने को कुछ ही समय में चमका कर और एक बड़े जन समर्थन को देखकर उन संगठनों के संगठन प्रमुख, राजनैतिक दलों में अपना स्थान बनाने में कामयाब हुए| राजनैतिक दलों में जाने के बाद भी कुछ लोग उन संगठन प्रमुखों से आशा की किरण की अपेक्षा में थे परन्तु विभिन्न दलों में जाने के बाद उनके मन से बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा छूमंतर हो चुका था|

जिसके बाद से यहाँ के लोग स्वयं को ठगा सा एवं निराश महसूस कर रहे हैं|

उत्तर प्रदेश में आने वाले बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग 19 विधानसभा सीटें हैं इनमें से ज्यादातर प्रत्याशी, विधायक या मंत्री बनने के बाद इस विषय पर बात न कर अपने व्यक्तिगत एवं आर्थिक विकास को प्राथमिकता देते रहें है|

  1. डूबने की कगार पर पहुँच रहे हाथ कागज उद्योग को क्यों नहीं मिल रहा कोई पतवारी :- बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित छोटे से क्षेत्र “कालपी” से देश एवं विदेशों में हाथ कागज एवं उससे बने उच्च कोटि के उत्पाद की आपूर्ति की जाती है| बढे हुए बिजली बिल एवं संसाधनों की कमी के कारण यह उद्योग लगभग ठप होने कगार पर खड़ा हैं जिसकी वजह से इस क्षेत्र का व्यापारी वर्ग अपनी डूबती हुई पूंजी के लिए अन्य विकल्पों की तलाश के लिए दर दर भटक रहा है| परन्तु इस उद्योग के लिए आज तक किसी सरकार द्वारा कोई रूपरेखा तैयार नहीं की गयी|
  1. पर्यटन के क्षेत्र में क्यों नहीं दी जा रही प्राथमिकता :- ऐतिहासिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी रहे इस क्षेत्र में पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं मौजूद हैं| परन्तु राजनैतिक उदासीनताओं एवं अशिक्षित नेतृत्व की वजह से बुंदेलखंड में इन संभावनाओं पर भी विराम सा लग गया है| जिसकी वजह से छोटे-छोटे क्षेत्रों से लोग अपने-अपने क्षेत्रों को पर्यटन नगरी घोषित कर, अपने शहर/कस्बे/गाँव से जुड़ी ऐतिहासिक समृद्धि को बचाने एवं पर्यटन के द्वारा रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए प्रयासरत हैं और लगातार छोटे छोटे मंचों से जागरूकता कैम्पों एवं ज्ञापनों के माध्यम से सरकार तक अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं|

यहाँ पर मैं विशेष रूप से “नवोदय कालप्रिय” संगठन का उल्लेख करना चाहूँगा| जिस संगठन ने अपनी ऐतिहासिक विरासतों को बचाने के लिए सरकार तक अपनी मांगो को पहुंचाने के लिए एक विशेष प्रकार का विकल्प ईजाद किया है| इस संगठन के सदस्य प्रत्येक रविवार अपने क्षेत्र के किसी एक ऐतिहासिक स्थल पर जाकर स्वच्छता कार्यक्रम चलाते हैं और अपने क्षेत्र को पर्यटन नगरी घोषित कराने के लिए अत्यधिक मेहनत कर रहे हैं| जिसकी वजह से क्षेत्र की मीडिया में यह संगठन अपना विशेष स्थान बनाये हुए है|

  1. खेती के संसाधनों और योजनाओं पर क्यों नहीं किया जा रहा दृढ़ता से काम: – पानी की समस्या, इस क्षेत्र की गंभीर समस्याओं में से एक है जिसके निवारण के लिए लगभग सभी सरकारें विफल साबित हुई है| कई बार नहरों के जोड़ने और चौडीकरण के लिए योजनाओं का शुभारम्भ होता रहा है परन्तु वास्तविकता को दरकिनार कर कागजों में आज भी नहरों में लबालब पानी बह रहा है|

इसके अतिरिक्त बिजली की अघोषित कटौती की वजह से मोटर पम्प वाले किसानों तक समय पर पानी नहीं पहुच पाता है|

  1. भुखमरी की समस्या से निपटने के लिए क्यों मुह मोड़ रहा राजनैतिक नेतृत्व: – आज भी इस क्षेत्र के बहुत से ग्रामवासी जंगल में उगने वाली घासों और बेलों पर आश्रित है| जो साफ दर्शाता है कि चुनावी वादों ने किस प्रकार से इस क्षेत्र की कमर तोड़ रखी है| आप इन क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी में भी कठिनतम जीवन जी रहे लोगों को देखकर निश्चित तौर पर अपनी आँखों से आंसू नहीं रोक पायेंगे| जिसके लिए आज तक क्षेत्र के विधायकों अथवा सांसदों द्वारा कोई सकारात्मक प्रयास नहीं किया गया|
  1. अवैध खनन पर क्यों आंख मूँद लेती है सरकारें: – सरकारों में परिवर्तन के हिसाब से इस क्षेत्र के खनन माफियाओं में भी आपको विभिन्नताएं देखने को मिल जायेंगी| प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का कुछ निश्चित हिस्सा यहाँ के चुने हुए जन प्रतिनिधियों तक पहुँचता रहता है और फिर सरकार के रसूख वाले मंत्रियों तक| कटु सत्य है कि खनन क्षेत्र के भविष्य में बुंदेलखंड में आपको किसी सरकारी टेंडर की आवश्यकता नहीं| जिसकी वजह से अक्सर सरकारें अवैध खनन पर आंखें मूँद लेती हैं|
  1. अस्पतालों और शिक्षण संस्थानों के क्षेत्र में भी क्यों पिछड़ा है यह क्षेत्र: – अस्पताल और शिक्षण दोनों ही अपने आप में वरीयता रखते हैं| परन्तु अगर आप बुंदेलखंड के निवासी है और किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है तो आपको मजबूरन कानपुर,दिल्ली,ग्वालियर जैसे शहरों का रुख करना पड़ता है| उसी प्रकार उच्च शिक्षा के लिए भी आपको इस क्षेत्र से बाहर का ही रुख करना पड़ेगा क्योंकि ना ही इस क्षेत्र में एम्स जैसा कोई अस्पताल है ना ही आईआईटी जैसा शिक्षण संस्थान|

जिस प्रकार तेलंगाना क्षेत्र का वर्षों तक दोहन होता रहा उसी प्रकार उतर प्रदेश में “बुंदेलखंड” का दोहन हो रहा है| बुंदेलखंड क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बाँदा और महोबा तथा मध्य-प्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतिया के अलावा भिंड जिले की लहार और ग्वालियर जिले की मांडेर तहसीलें तथा रायसेन और विदिशा जिले का कुछ भाग भी शामिल है। उत्तर प्रदेश के भिन्न-भिन्न संगठनों के नामचीन नेतागणों में बुंदेलखंड से चुनाव लड़ने की होड़ सी लगी है| परन्तु उनमें से कोई भी इस क्षेत्र के विकास के लिए पृथक राज्य बनाने की बात नहीं करता है| मुझे लगता है कि बुंदेलखंड के निवासियों को इन चुनावों में आने वाले सभी प्रत्याशियों से कोई वादा नहीं अपितु एक चुनौती लेनी चाहिए कि या तो वे बुंदेलखंड राज्य की बात करें या फिर आने वाले चुनावों में उनका सूपड़ा साफ|

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Tags: BundelkhandUPElections2017Uttar Pradesh

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